शुक्रवार, 22 मई 2015

मिडिया का राजधर्म

मिडिया का राजधर्म 


आज अमर उजाला के स्थानीय संस्करण पर प्रकाशित समाचार के शीर्षक से एक बार फिर मिडिया की चालबाजी सामने आ गई । शीर्षक कहता है " जुर्म छोड़ा " यानि पहले नामित व्यक्ति किसी अपराध में शामिल पाए गए थे । लेकिन इन्होंने कोई जुर्म किया ही नहीं था इसलिए अदालत में चलाए गए मुकदमे के दौरान किसी जुर्म का होना पाया भी नहीं गया और माननीय अदालत ने नामित व्यक्तिओं को बरी कर दिया । मामला इस्माईलाबाद ग्रामीण क्षेत्र में कई साल पहले आवासीय प्लाटों की मांग को लेकर चले आंदोलन और जिला पुलिस द्वारा दलितों और यूनियन कार्यकर्ताओं पर दर्ज राजद्रोह के झूठे मुकदमों का है । यह फर्जी मुकदमा अदालत में एक कदम के लिए भी न टिक पाया था । इसके बावजूद इस आंदोलन में दलित जनता का पक्ष लेने वाले कार्यकर्ताओं को पुलिस रिकॉर्ड में आज भी " बदमाश" दर्शाया गया है ।  खबर के शीर्षक से लगता है जैसे ये लोग पहले कोई अपराध करते थे । पर ऐसा नहीं है । इनमे क्षेत्र के जानेमाने सामाजिक व राजनितिक कार्यकर्त्ता मास्टर सतीश जिन्होंने शिक्षा विभाग में अपने सेवाकाल के दौरान लगातार कर्मचारियों के अधिकारों की लड़ाई लड़ी और बाद में सेवानिवृति के बाद ग्रमीण मजदूरों के अधिकारों के आंदोलन में सक्रीय रहे और लगातार डटे हुए है । बाकि नामित व्यक्ति भी इलाके के जनवादी और दलित अधिकारो की लड़ाई के अहम चेहरे है । पत्र ने यह समाचार भले ही प्रमुखता से छापा है लेकिन अपनी तथ्यों को तोड़मरोड़ कर पेश करने की सामन्ती तिकड़म से बाज नहीं आया है । ये लोग कभी भी अपराधी नहीं थे । न इन्होंने कभी कोई जुर्म किया । जिला पुलिस ने जरूर अपराध किया था क्योंकि फर्जी मुकदमा दर्ज करना एक दण्डनीय अपराध है । दूसरा अपराध  क्षेत्र के सम्माननीय व्यक्तिओं को पुलिस रिकार्ड में " बदमाश" दिखाकर किया है । क्योंकि ऐसा करने के लिए पुलिस के पास कोई क़ानूनी आधार और समर्थन नहीं है । इसलिए आयोग ने पुलिस अधीक्षक के जवाब पर गंभीर आपत्ति दिखाई है ।

जिन्होंने कभी कोई अपराध नहीं किया अमर उजाला का शीर्षक उन्हें पुराने अपराधी बताता है । समाचार पत्र और पुलिस की सोच में कोई तो अंतर होना चाहिए ।
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पूरा समाचार :

जुर्म छोड़ा पर नहीं हटता ‘बैड करेक्टर’ का ठप्पा

हर्ष कुमार सलारिया

चंडीगढ़। अपराध छोटा हो या बड़ा, एक बार भी कोई व्यक्ति पुलिस के हत्थे चढ़ा तो उसे हमेशा के लिए अपराधी मान लिया जाता है। पुलिस के रजिस्टर में उसका नाम और फोटो ‘बैड करेक्टर’ के तौर पर दर्ज हो जाता है, लेकिन अब ऐसा नहीं चलेगा। हरियाणा मानवाधिकार आयोग ने आठ पीड़ितों की याचिका पर सुनवाई करते हुए पुलिस के जवाब पर न सिर्फ असंतोष जताया है बल्कि इस बारे में राज्य सरकार को दिशा-निर्देश देने केलिए मानवाधिकार आयोग के महानिदेशक को आठ हफ्ते में अध्ययन कर रिपोर्ट देने को कहा है।

कुरुक्षेत्र जिले के आठ लोगों ने अपने नाम के साथ लगे पुलिस के इसी ‘ठप्पे’ से आहत होकर राज्य मानवाधिकार आयोग का दरवाजा खटखटाया है। उप तहसील इस्माइलाबाद के गांव चम्मू कलां, गांव इस्माइलाबाद और गांव खेड़ी शहीदां केनिवासी जयभगवान, जीत राम, नरेश कुमार, दर्शन सिंह, सतीश कुमार, धर्मपाल, नरेश कुमार और बिंदर ने मानवाधिकार आयोग के समक्ष याचिका देकर कहा कि वे पुलिस के रिकार्ड में ‘बैड करेक्टर’ हैं, जोकि उनके नाम के साथ 2005-06 में दो मामले दर्ज करते हुए पुलिस ने लगाया था। याचिका के अनुसार, इन मामलों में से एक आईपीसी की धारा 124ए का था, जिसमें उन्हें जमानत मिल गई और बाद में अदालत में केस खारिज हो गया। इसके अलावा दूसरा मामला आईपीसी की धारा 323, 342 व 506 के तहत दर्ज किया गया, लेकिन वे सभी इस केस में बरी हो गए। याचिका में कहा गया है कि इसकेबावजूद पुलिस ने उनके नाम के साथ लगे ‘बैड करेक्टर’ केठप्पे को नहीं हटाया, जिससे वे आज तक अपने आसपास के लोगों में अपमानित हो रहे हैं।

यह कहा मानवाधिकार आयोग ने

मानवाधिकार आयोग ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए कुरुक्षेत्र के एसपी को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। एसपी ने अपने जवाब में जो कहा, उससे पुलिसिया रवैये की झलक देखकर मानवाधिकार आयोग भी चिंतित हो गया। आयोग ने एसपी के जवाब पर असंतोष जताते हुए कहा कि इस बारे में पुलिस के सारे तर्क किसी भी व्यक्ति के मानवाधिकारों का उल्लंघन करते हैं। कई मामलों में तो पुलिस ने सरकार केखिलाफ भाषण देने वालों पर भी बैड करेक्टर का ठप्पा चस्पा कर दिया, जोकि पूरी तरह गलत है। इसके अलावा पुलिस या किसी सरकारी अधिकारी से मारपीट के मामले में भी पुलिस ने इसी ठप्पे का इस्तेमाल किया, जो तय दिशा-निर्देशों का उल्लंघन है। एसपी कुरुक्षेत्र के जवाब पर गौर करने केबाद मानवाधिकार आयोग ने पाया कि इस मसले पर विस्तृत अध्ययन के बाद राज्य सरकार के लिए दिशा-निर्देश जारी करना आवश्यक है। इसी के मद्देनजर आयोग ने महानिदेशक को इस मामले का अध्ययन कर आठ हफ्ते में रिपोर्ट पेश करने केनिर्देश जारी किए। मामले की अगली सुनवाई 30 जुलाई को होगी।

आठ लोगों की याचिका पर महानिदेशक को अध्ययन का जिम्मा सौंपा

कुरुक्षेत्र के आठ लोग छूट जाने के बाद आज तक हैं ‘बैड करेक्टर’