शुक्रवार, 29 जुलाई 2016

पुलिस दमन मुर्दाबाद इंकलाब जिंदाबाद

पुलिस दमन मुर्दाबाद

इंकलाब जिंदाबाद

सात साल पहले जींद पुलिस ने नरवाना सदर थाना क्षेत्र से आठ नवयुवकों को माओवादी बताकर गिरफ्तार किया था । ये युवक क्रांतिकारी मजदूर किसान संगठन से जुडे थे । यह संगठन भूमिहीनों के लिए जमीन की मांग करता था । जमीन के मुद्दे को उठाता था । 2005 से इस संगठन पर सरकारी दमन षुरू हुआ । इसके नेताओं व कार्यकर्ताओं को फर्जी मुकदमों में फंसाया जाने लगा । मिडिया ने भी सरकार के सुर में ताल मिलाते हुए इस संगठन को देष द्रोही करार दे दिया । एक के बाद एक सनसनीखेज समाचार समाचार पत्रों में छपने लगे ।

आज जबकि पुलिस के सभी आरोप बेबुनियाद पाए गए हैं तो जिला पुलिस की उक्त कारवाई पर कोई सवाल नहीं उठाये जा रहे । आज जब हरियाणा पुलिस के आरोप सही नही पाए गए , सभी नवयुवकों को बेकसूर पाया गया तो एक छोटा सा कालम समाचार अखबारों ने छाप दिया । फैसला आने के बाद हमने जिला के प्रमुख पत्रों से संपर्क किया तो कईयों ने यह कहकर इस समाचार में दिलचस्पी नहीं दिखाई कि यह घटना उनके क्षेत्र में नहीं आती है ।

2009 में जब मैं जिला कारागार जीन्द में बन्द था तो रोज प्रदेष में बढते माओवाद पर सनसनीखेज समाचार पढने को मिलते थे । मुम्बई स्थित ताज होटल पर जब नवम्बर 2009 में आतंकवादी हमला हुआ तो जीन्द के एक अखबार ने मेरा व मेरी पत्नी गीता का सम्बन्ध उस घटना से जोड़ते हुए समाचार छापा था। आज जिला पुलिस पर कोई उंगली नही उठाई जा रही । ऐसा क्यों है । ऐसा मीडिया के जनविरोधी चरित्र के कारण है । क्योंकि मजदूर किसान संगठन भूमिहीनों के मामले उठाता था । और हमारे देष में भूमिहीन का अर्थ है दलित यानि निम्न जाति के लोग । जिनको इंसान का भी दर्जा नहीं प्राप्त है । ऐसे समुदाय की आवाज उठाने वाले संगठन का सकारात्मक समाचार भला ये उच्च जातिय मीडिया भला क्यों छापने लगा ।