गुरुवार, 17 जुलाई 2014

ये दीवारें गिरेँगी -- राजेश कापड़ो


ये दीवारें गिरेँगी,ये पहरे हटेगेँ !
लोहे के पिँजरोँ से पंछी उड़ेँगे !!
मिटा दे चमन को या फूलों को मसले
वो गुलिस्ताँ की खुशबू मिटा ना सकेंगे !

ये जमना के धारे ये सतलुज की हलचल
वो गंगा पे पहरा लगा ना सकेंगे !

ये फाँसी के फंदे ये बिजली के हँटर
दिवानों का मस्तक झुका ना सकेंगे !

स्वर्गोँ की दुनिया मुबारक हो तुमको
ये महलों के झाँसे हिला सकेंगे !

कमेरोँ के आँगन में लाखों अँधेरा !
वो लहू के चरागे बुझा ना सकेंगे !

ये भाड़े की फौजेँ बड़े तोपखाने !
बस्तर को आँखें दिखा ना सकेंगे !

ये कुत्तों की भों-भों सियारोँ की चिं-पों !
पपीहे सी सरगम सुना ना सकेंगे !

ये दीवारें गिरेँगी ये पहरे हटेँगेँ !
लोहे के पिँजरोँ से पंछी उड़ेँगे !!

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