रवां है काफिला-ए-इर्तिका-ए
इंसानी । निजाम-ए-आतिश-ओ-आहन का दिल हिलाये हुए । बगावतों के दुहल बज रहे हैं
चारों ओर । निकल रहें हैं जवां मशालें जलाए हुए । गौरी लंकेश की सदा को दबाना तो
खैर मुमकिन है । मगर हयात की ललकार कौन रोकेगा ? फसीले आतिश-ओ-आहन बहुत बुलंद सही । बदलते ‘अभियान’ की ललकार कौन रोकेगा ?
प्रो. विकास गुप्ता का भाषण
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प्रो. पारथो सारथी का भाषण
द्वीमासिक पत्रिका अभियान के 100वें अंक के प्रकाशन के अवसर पर 16-17 दिसंबर को सर छोटूराम धर्मशाला सोनीपत के गौरी लंकेश हाल में दो दिवसीय
अभियान गोष्ठी का आयोजन किया गया । अभियान के इस आयोजन में 16 दिसंबर को हरियाणा व उतर भारत से प्रकाशित होने वाली कई लघु पत्रिकाओं के
संपादको ने भाग लिया । कार्यक्रम की शुरूआत में अभिव्यक्ति की आजादी की रक्षा करते
हुए अपने प्राणों की आहुति देने वाली संपादक गौरी लंकेश को भावभीनी श्रद्धांजलि दी
। अभियान संपादक मंडल के पूर्व सदस्य व सांस्कृतिक कर्मी साथी देवेन्द्र रोहिला,
जनवादी रागणी लेखक रामेश्वर दास गुप्ता, युवा
रंगकर्मी ईश्वर व कवि आर डी चेतन को का्रंतिकारी श्रद्धांजलि देते हुए हरियाणा के
सांस्कृतिक आंदोलन में इन साथियों के योगदान को रेखांकित किया गया । गोष्ठी में
आये महमानों ने अभियान अंक 100 के प्रकाशन के अवसर पर अभियान
को बधाई दी । हरियाणा से प्रकाशित होने वाली पत्रिका ‘देश
हरियाणा’ के संपादक डॉ- सुभाष ने कहा कि हरियाणा जैसे प्रांत
में किसी लघु पत्रिका का 100वां अंक प्रकाशित होना सचमुच एक
उल्लेखनीय घटना है । यह अवसर अभियान के लिए किसी उत्सव से कम नहीं है । अभियान का 100वां अकं जिस दौर में प्रकाशित हुआ है यह इस परिघटना को और भी महत्वपूर्ण
बना देता है । दिल्ली से प्रकाशित होने
वाली पत्रिका ‘मोर्चा’ के संपादक गोपाल
जी ने अभियान को इस अवसर पर बधाई दी । उन्होने कहा कि आज जिस दौर से हम गुजर रहे
है, जहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमले तेज हो रहे,
अभियान जैसी पत्रिकाओं का प्रकाशन और ज्यादा जरूरी हो गया है ।
गोपाल जी ने कहा कि भाषा का सवाल भी असल में वर्ग का सवाल है । सभी नए अध्ययन व
शौध शासक वर्गों की भाषा अंग्रेजी में
प्रकाशित होते हैं । आम जन की भाषाओं को षड़यंत्र के तहत उभरने से रोका जा रहा है
। सामाजिक सरोकारों को आगे बढाने के लिए देशी भाषाओं का विकास जरूरी है, इसलिए भी अभियान जैसी लघु पत्रिकाओं का महत्व बढ जाता है । अभियान पत्रिका
के संस्थापक संपादकों में एक व सांस्कृतिक कर्मी राजीव सान्याल ने 100वें अभियान का स्वागत शायराना अंदाज में किया । साहिर लुधियानवी का शेयर
राजीव सांयाल ने कुछ इस तरह पढ़ा - रवां है काफिला-ए-इर्तिका-ए इंसानी ।
निजाम-ए-आतिश-ओ-आहन का दिल हिलाये हुए । बगावतों के दुहल बज रहे हैं चारों ओर ।
निकल रहें हैं जवां मशालें जलाए हुए । गौरी लंकेश की सदा को दबाना तो खैर मुमकिन
है । मगर हयात की ललकार कौन रोकेगा ? फसीले आतिश-ओ-आहन बहुत
बुलंद सही । बदलते ‘अभियान’ की ललकार
कौन रोकेगा ? उत्तर प्रदेश से छपने वाली पत्रिका ‘दस्तक’ की संपादक सीमा आजाद का बधाई संदेश गोष्ठी
में पढा गया । सीमा आजाद ने कहा कि अभियान का इस मुकाम तक पहुंचना उन लोगों के लिए
करारा जवाब है जो यह कहते हैं कि सिर्फ जन सहयोग से पत्रिका चलाना संभव नहीं है ।
उत्तराखंड से प्रकाशित होने वाले हिंदी पत्र ‘नागरिक’
के संपादक मनीष ने गोष्ठी में उपस्थित अभियान पाठकों को संबोधित
करते हुए कहा कि आज के दौर में छोटी पत्रिकाओं को एक संयुक्त मोर्चे का निर्माण
करना चाहिए ताकि अभिव्यक्ति की आजादी पर बढ़ते फासीवादी हमलों का मुकाबला किया जा
सके ।
अभियान के संपादक मंडल की ओर से डॉ- सुरेन्द्र भारती ने
पत्रिका की संपादकीय रिर्पोट प्रस्तुत की । अभियान प्रकाशन में आ रही तमाम
समस्याओं को पाठकों के सामने पेश किया ।
उपस्थित पाठकों ने अपने अमूल्य सुझाव दिए । संपादक मंडल की कमियों व कमजारियों पर
चर्चा की गई । पाठकों ने संपादक मंडल का आह्वान किया कि अभियान के प्रचार-प्रसार
के लिए लक्ष्य निर्धारित किए जाये । अभियान का वितरण बढ़ाया जाए । पाठकों ने सुझाव
दिया कि सुचना के इस युग में अभियान को भी ऑनलाईन किया जाए । अभियान के प्रचार
प्रसार के लिए सोशल मीडिया का भरपूर इस्तेमाल किया जाए ।
अभियान गोष्ठी के इस स्तर के समापन में निम्न प्रस्ताव
ध्वनि-मत से पारित किये गए:
डॉ जीएन साईबाबा, चंद्रशेखर
आजाद व आरटीआई कार्यकर्ता शिवकुमार सहित तमाम राजनीतिक बंदियों को बिना शर्त रिहा
किया जाये । वरिष्ठ माओवादी चिंतक कामरेड कोबाद गांधी की राजनीतिक प्रताड़ना बंद
करो । वयोवृद्ध चिंतक को तुरन्त मुक्त किया जाये । लव जिहाद के नाम पर मुस्लिम
समुदाय को निशाना बनाने वाले फासीवादी गिरोहों का भंडाफोड़ करो । भाटला (हिसार) में
दलितों के सामाजिक बहिष्कार की घटनाओं का विरोध करो आदि ।
काकोरी के महान शहीदों की याद में सांस्कृतिक संध्या का
आगाज 16 दिसंबर को
5 बजे शहीद बिस्मिल की मशहूर गजल ‘सर
फरोशी की तम्मन्ना अब हमारे दिल में है’ के साथ हुआ । कड़ाके
की शीत लहरों का स्वागत सांस्कृतिक कर्मियों व क्रांतिकारी जोश से सराबोर जन समुह
ने गरमजोशी के साथ किया और रात को 11 बजे तक सैंकडों
महिला-पुरूष-बच्चे जन रंगमंच के धधकते अलाव का ताप सेकते रहे । पंजाब के जानेमाने
जन रंगकर्मी सैमुअल जॉन के सांस्कृतिक जत्थे ने अपनी पंजाबी लघु नाटिका ‘गधा और शेर’ की धाकड़ प्रस्तुति से दर्शकों को अपने
ही रंग में रंग लिया और दर्शक खुद अभिनेता बन गए । ‘गधा और
शेर’ ने बड़े ही सहज व्यंग वाले कथानक के साथ व्यवस्था की
पोल खोल दी । चंडीगढ़ से आये पीपुल्स आर्टिस्ट फोरम के कलाकारों ने देर रात तक
क्रांतिकारी गीतों का शमा बांधे रखा । जागृति मंच कुरूक्षेत्र के कलाकारों ने महान
नाटककार गुरूशरण सिहं के प्रसिद्ध नाटक ‘गड्डा’ का मंचन किया व जन गीत प्रस्तुत किये । गुम्फन थियेटर के कलाकारों ने सआदत
हसन मंटो की कहानियों पर आधारित एक सोलो का जबरदस्त मंचन किया । गंभीर विषय वस्तु
वाली इस सोलो ने दर्शकों को भावविभोर कर दिया तथा सांप्रदायिक दंगों की राजनीति
करने वाली ताकतों का पर्दाफाश किया । कड़ाके की ठंड के बावजूद दर्शक काकोरी के
महान शहीदों को समर्पित इस क्रांतिकारी संध्या में देर रात तक डटे रहे ।
17 दिसंबर को सुबह 10
बजे गौरी लंकेश हाल दिल्ली विश्वविद्यालय के विद्वान प्रोफेसर विकास गुप्ता को
सुनने के लिए खचाखच भर गया । प्रो- विकास गुप्ता ने समाजवादी क्रांति के बाद
सोवियत संघ द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में किये गए अदभुत प्रयोगों पर विचार रखे ।
उन्होनें सोवियत क्रांति द्वारा अपनाई गई
शिक्षा नीतियों पर व्याख्यान देते हुए कहा कि सोवियत सत्ता ने सबके लिए
समान व मुफ्रत शिक्षा का बंदोबस्त किया था । उन्होनें कहा कि आज जबकि शिक्षा को
बाजार बना दिया गया है, राज्य शिक्षा प्रदान करने की अपनी
जिम्मेदारी से मूंह मोड़ चुका है, ऐसे में शिक्षा के क्षेत्र
में सोवियत सत्ता के प्रयोगों को याद करने के लिए ऐसी विचार गोष्ठी का आयोजन करने
लिए आयोजक धन्यवाद के पात्र हैं । उन्होनें बताया कि सोवियत सत्ता ने शिक्षण
संस्थानों की स्वायतता पर बहुत जोर दिया और यह कहना भी अतिश्योक्ति न होगा कि उसने
मजदूर-किसानों की संस्कृति को ही मुख्यधारा की संस्कृति बना दिया था । सोवियत संघ
में स्वास्थ्य के क्षेत्र में हुए महान प्रयोगों पर रोशनी डालते हुए प्रो- पारथो
सारथी ने कहा कि समाजवादी क्रांति के समय सोवियत संघ एक अति पिछड़ा देश था । उसकी
हालत कमोबेश भारत जैसे ही थी । क्रांति पूर्व रूस में सामान्य सी बीमारियों के
कारण लाखों लोग मौत का ग्रास बनते थे । सोवियत शासन ने स्वास्थ्य को प्राथमिकता का
सवाल समझते हुए दो सिद्धांत को अपनाया कि पहला, व्यक्ति का
स्वास्थ्य पूरे समाज का उतरदायित्व है तथा दूसरा, उपचार की
बजाये रोकथाम पर जोर दिया जाये । जबकि
पूंजीवादी शासन में नीजि मुनाफे के लिए उपचार पर ज्यादा जोर दिया जाता है ।
पारथो सारथी ने कहा कि पूंजीवाद में बीमारियों का बाजार फलता-फूलता है ।
दोनों विद्वान वक्ताओं के वक्तव्य के बाद अभियान संपादक
मंडल की ओर से डॉ- भारती ने कार्यक्रम की समाप्ती की घोषणा करते हुए हरियाणा
प्रदेश व उत्तर भारत के अलग अलग राज्यों से गोष्ठी में आए पाठकों का धन्यवाद किया
। गोष्ठी के सफल आयोजन के लिए छात्र अविभावक मंच हरियाणा और छात्र एकता मंच
हरियाणा के साथियों का हार्दिक धन्यवाद किया, जिनकी
कड़ी मेहनत ने कड़ाके की ठंड के बावजूद आयोजन को सफल बनाया ।
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