
12 मई
को
सुबह 8 बजे
ग्रामिणों
ने
विद्या
देवी
को
बताया
कि
जितेन्द्र
की
लाश
नरेश
उर्फ
महेसड
व
नन्हा
के
खेतों
में
पड़ी
है
।
जितेन्द्र
के
परिजनों
ने
थाना
कलायत
को
इस
वारदात
की
सूचना
दी
।
पुलिस
से
शव
को
कब्जा
में
लेकर
पोस्टमार्टम
करवाया
।
परिजनों
ने
मृतक
का
अंतिम
संस्कार
कर
दिया
।
लेकिन
पुलिस
ने
कोई
एफआईआर
दर्ज
नहीं
की
।
स्थानीय
पुलिस
अधिकारी
पीडि़त
परिवार
को
डराने
धमकाने
लगे
।
पुलिस
अधीक्षक
कैथल
को
दो
बार
शिकायत
की
गई
।
अन्त
में
पीडि़ता
विधवा
ने
पुलिस
महानिदेशक
हरियाणा
व
मुख्यमंत्री
हरियाणा
से
जितेन्द्र
के
हत्यारे
जमींदारों
के
खिलाफ
कानूनी
कार्रवाई
करने
की
गुहार
लगाई
।
तदुपरान्त
यह
मामला
परिवाद
संख्या
349 DGPN Dated
08/06/2017 पुलिस अधीक्षक
कैथल
के
कार्यालय
से
डाक
द्वारा
डीएसपी
कैथल
के
पास
कार्रवाई
हेतू
भेजा
गया
तथा
थाना
कलायत
में
दिनांक 21 जून 2017 को नरेश
उर्फ
महेसड़
के
खिलाफ
मुकदमा
संख्या 148 हत्या के
अपराध
में
दर्ज
किया
गया
।
लेकिन
अभी
तक
पुलिस
ने
इस
संबंध
में
कोई
गिरफ्तारी
नहीं
की
है
।
जनसंघर्ष
मंच
के
प्रदेश
अध्यक्ष
श्री
फूल
सिहं
के
नेतृत्व
में
मंच
के
पदाधिकारी
पीडि़त
परिवार
से
खरक
पांडवा
में
जाकर
मिले
तथा
घटना
की
जानकारी
ली
। 27 जून
को
हत्या
के
इस
मुकदमा
में
दोषियों
की
गिरफ्तारी
के
बारे
में
एसपी
कैथल
से
बात
की
।
इसके अलावा हरियाणा बाल्मीकि संघर्ष समिति के नेता भी पीडि़त परिवार से मिले तथा उन्होने पीडि़त परिवार को न्याय दिलाने की बात कही । समिति
के
प्रदेश
सचिव
कैलाश
चंद
क्योड़क
और
जिला
अध्यक्ष
रामकला
रेहड़ा
ने
दलित
परिवार
पर
हुई
ज्यादती
की
निंदा
की
तथा
जिला
पुलिस
को
चेताया
यदि 15 दिन
के
अंदर
दबंग
दोषियों
को
पकड़ा
नही
गया
तो
दलित
समाज
आंदोलन
करने
को
मजबूर
हो
जाएगा
।
उन्होने
कहा
कि
जिला
पुलिस
पीडि़त
परिवार
को
न्याय
दिलाने
की
बजाये आरोपियों का
बचाव
कर
रहे
हैं
तथा
आरोपी
पीडि़त
परिवार
को
धमका
रहे
हैं
।
उधर
एसपी
ने
बताया
कि
पुलिस फोरैंसिक लैब
से
रिर्पोट
आने
का
इंतजार
कर
रही
है
जिसके
आधार
पर
मृत्यु
का
कारण
स्पष्ट
हो
पाएगा
तथा
उसके
उपरान्त
ही
इस
केस
में
कोई
गिरफ्तारी
की
जा
सकेगी
।
इस
केस
में
मृतक
जितेन्द्र
की
विधवा
घटनाक्रम
की
चश्मदीद
गवाह
है
जिसके
सामने
दोषिगण
जितेन्द्र
को
अगवा
करके
ले
गये
थे
तथा
इसके
अलावा
पीडि़ता
ने
दोषिगण
द्वारा
मृतक
को
फोन
पर
दी
गई
धमकियों
की
ऑडियो
रिकॉडिंग
भी
बना
रखी
है
जो
दोषियों
का
संबंध
हत्या
की
इस
वारदात
के
साथ
जोड़ने
के
लिए
काफि
है
।
यह
बात
भी
प्रमाणित
है
कि
मृतक
दोषियों
के
खेत
पर
बंधवा
था
तथा
दोषी
उसको
कर्ज
के
जाल
में
फंसा
कर
अमानवीय
दशाओं
में
काम
करने
को
मजबूर
कर
रहे
थे
।
यहां
पर
दोषिगण
को
बिना
मुकदमा
चलाए
जेल
में
डालने
की
मांग
नहीं
की
जा
रही
बल्कि
उनको
न्यायिक
हिरासत
में
लेकर
यह
जांच
करने
की
गुहार
लगाई
जा
रही
है
कि
उन्होने
हत्या
का
अपराध
किया
है
या
नहीं
।
यदि
न्यायालय
में
प्रस्तुत
किए
गए
साक्ष्य
उपयुक्त
नहीं
पाए
गए
तो
न्यायालय
दोषियों
को
बरी
कर
देगा
।
उपरोक्त
वर्णित
साक्ष्य
दोषियों
की
गिरफ्तारी
के
लिए
पर्याप्त
हैं
।
लेकिन
पुलिस
अपने
उच्च
जातिय
रवैये
के
कारण
आरोपियों
को
गिरफ्तार
नही
कर
रही
।
ऐसे
मामलों
की
कमी
नहीं
है
जहां
पर
पुलिस
बिना
उपयुक्त
साक्ष्यों
के
भी
गिरफ्तारी
करती
है
तथा
पुलिस
हिरासत
में
ही
दोषियों
पर
थर्ड
डीग्री
का
प्रयोग
करके
जुर्म
करने
की
हामी
भरवाती
है
।
क्योंकि
जूर्म
को
अन्जाम
देने
वाले
प्रभावशाली
जमींदार
तथा
दबंग
जाति
से
संबंधित
है
इसलिए
जब
तक
उन
पर
दोष
पूर्णतया
सिद्ध
नहीं
हो
जाता, उन्हे
सलाखों
के
पीछे
नहीं
भेजा
जाएगा
।
यदि
किसी
मामूली
आदमी
पर
जूर्म
करने
का
आरोप
लगता
है
तो
वह
तब
तक
जेल
से
बाहर
नहीं
आता, जब
तक
न्यायालय
द्वारा
निर्दोष
करार
नहीं
दिया
जा
चुका
होता
।