बुधवार, 15 मार्च 2017

नोटबंदी



परेशान भारत को क्या कुछ मिल पाएगा?
परमजीत

अभियान के अंक 97  में छपा लेख


 8 नवंबर को प्रधानमंत्री मोदी ने 500 और 1000 रुपए के नोटों को अवैध घोषित कर दिया। और 500 तथा 2000 के नए नोट जारी करने की घोषणा की। यह कदम उठाने से उनके अनुसार देश से काला धन खत्म हो जाएगा, जाली नोटों की वजह से देश की अर्थव्यवस्था को होने वाले नुकसान से मुक्ति मिल जाएगी, देश में फैल रहे आतंकवाद और माओवाद को करारा झटका लगेगा। उन्होंने कहा था कि इस एक कदम से देश के भ्रष्ट लोग परेशान होंगे और ईमानदार लोग चैन की नींद सोएंगे। काले धन के रूप में कोठरियों में रखे पैसे जब बैंकों में आएंगे तो देश की अर्थव्यवस्था बेहतर होगी, नई नौकरियों का सृजन होगा। 
उस दिन शायद ही देश का कोई ईमानदार व्यक्ति ऐसा होगा, जिसने प्रधानमंत्री के इस कदम की सराहना न की हो। किसी भी देश से काले धन को बाहर निकालने और मुद्रा की खामियों को दूर करने के लिए जो तरीके अपनाए जाते हैं, विमुद्रीकरण (नोटबंदी) उनमें से एक तरीका होता है। देश में पहले भी दो बार यह विमुद्रीकरण हो चुका था। हालांकि उस वक्त कोई उत्साहजनक परिणाम नहीं मिले थे, लेकिन मोदी की इस घोषणा के बाद लोगों में पुनः आशा की किरण जगी थी कि शायद इस बार काले धन से मुक्ति मिल सकें।
विमुद्रीकरण को हुए एक महीना बीत चुका है। इस दौरान बहुत सी चीजें सामने आई हैं। इनकी रोशनी में प्रधानमंत्री के इस कदम का विश्लेषण करना हमारे लिए संभव है। 
देश में 1अप्रैल 2016 को कुल 17 लाख करोड़ रुपए की करेंसी मौजूद थी। इसमें से लगभग 85» यानि लगभग 14 लाख करोड़ रुपए की करेंसी 500 और 1000 के नोटों के रूप में थी और बाकी की करेंसी इससे छोटे यानि 100,50,20, 10 और 5 के नोटों के रूप में थी। यानि सरकार के सामने मोटा-मोटी यह काम था कि पुराने पड़ चुके 14 लाख करोड़ रुपए के नोटों के स्थान पर नए 14 लाख करोड़ रुपए के नोट बाजार और बैंकों में उतार दे। इस प्रक्रिया में जिन लोगों ने अपनी तिजोरियों, गल्लों, तकियों, कोठरियों और जमीन में पुराने नोट गाड़ के रख रखे थे, या तो वे इन्हें बैंकों में जमा करवा सकते थे, या ये नोट कागज के टुकड़े बन कर रह जाने थे। 
विमुद्रीकरण की प्रक्रिया से होने वाले जो लाभ प्रधानमंत्री ने अपने 8 नवंबर वाले भाषण में गिनाए थे, एक महीने के बाद वे लाभ मिलते नजर नहीं आ रहे हैं। फिर भी अगर यह प्रक्रिया तैयारी के साथ होती तो जनता को उन भयानक दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ता जिनसे उन्हें अभी दो-चार होना पड़ रहा है। एक औसत बुद्धि का व्यक्ति भी जिन तैयारियों के बारे में पूछेगा, एक महीना बीतने के बाद समझ में आ रहा है कि वे तैयारियां भी नहीं की गयी। इस एक महीने के दौरान पूरा देश कतारों में लगा नजर आया है। लगभग 100 लोगों की मृत्यु इन कतारों में हो गयी या करेंसी न मिलने के चलते उन्होंने आत्महत्या कर ली। किसानों की बिजाई वक्त पर नहीं हो पायी है। किसानों द्वारा खेतों में पैदा की जाने वाली फसलें जैसे हरी सब्जियां आदि खरीददारों के अभाव में बर्बाद हो गयी और करोड़ों रुपए का नुकसान किसानों को उठाना पड़ा। छोटे और मझौले उद्योग करेंसी के अभाव में बंद हो गये। मजदूर बेरोजगार हो गए। सीएमआईई (सैंटर फॉर मोनिटरिंग आफ इंडियन इकॉनामी) के बहुत कंजरवेटिव अनुमान के मुताबिक देश को इस विमुद्रीकरण की वजह से 1-28 लाख करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ेगा। इसका अर्थ है कि यह नुकसान और ज्यादा भी हो सकता है। इस नुकसान में लगभग 65 हजार करोड़ रुपए तो उद्योगों को ही उठाना पड़ेगा। इसके अलावा इसमें नए नोट छापने पर होने वाला खर्च, किसानों का होने वाला नुकसान, काम धंधा छोड़ कर बैंकों की लाइनों में लगने वाले लोगों को होने वाले आर्थिक नुकसान आदि शामिल हैं। 19 दिन बाद भी 14 लाख करोड़ रुपए के नोटों के बदले रिजर्व बैंक महज 1-5 लाख करोड़ रुपए ही बाजार में डाल पाया था। इससे समझा जा सकता है कि बिना करेंसी के अर्थव्यवस्था का हर अंग कैसे ठप्प होकर रह गया है। हालांकि ई-कामर्स के दावे किए जा रहे हैं लेकिन ये केवल बड़े शहरों के चंद लोगों तक ही सीमित है। देश की 96» जनता अपने भुगतान नकदी में करती है। और इसे एक झटके में कैश लैस भुगतान में बदलने की बात तो सोची भी नहीं जा सकती। 
देश की जनता बड़े से बड़ा नुकसान भी बर्दाश्त कर लेगी अगर उसे सचमुच काले धन से मुक्ति मिल जाए। लेकिन काले धन से मुक्ति के सरकारी दावे चुनावी जुमले ज्यादा प्रतीत हो रहे हैं। जरा इन आंकड़ों पर नजर डालिए। 
राष्ट्रीय जांच एजेंसी एनआईए का कहना है कि देश में कुल जाली करेंसी 400 करोड़ रुपए की है। यानि प्रत्येक एक हजार रुपए के पीछे 28 पैसे जाली करेंसी के रूप में है। आर्थिक जानकारों का मानना है कि यह अनुपात आटे में नमक के बराबर भी नहीं है। और इससे ज्यादा जाली करेंसी दुनिया के बहुत से देशों में है। इससे न तो देश की अर्थव्यवस्था को कोई बड़ा नुकसान पंहुचता है और न ही इसके लिए इस प्रकार के र्रैिडकल कदम उठाने की जरूरत पड़ती है। सोशल मीडिया पर एक बात को आमतौर पर स्वीकार कर लिया जा रहा है कि नई करेंसी की डुप्लीकेट तैयार नहीं की जा सकती। यह एक बहुत बड़ा मिथक है क्योंकि दुनिया की हर करेंसी की जाली नोट मौजूद हैं। डॉलर और पाउंड के भी जाली नोट मौजूद हैं और अच्छी खासी संख्या में मौजूद हैं। इसलिए जाली नोटों की समस्या से निपटने के लिए नोटबंदी कोई प्रभावी और अकलमंदी वाला निर्णय नहीं है। ऐसी सूरत में तो बिल्कुल भी नहीं जब जाली करेंसी सिर्फ 400 करोड़ की हो। इन चंद सप्ताहों के दौरान ही तीन करोड़ रुपए के नए नोटों की जाली करेंसी की बात तो जांच एजेंसियों के सामने आ भी चुकी है। 
इसी से सरकार के दूसरे तर्क की पोल पट्टी खुलती है। जब सरकार यह कहती है कि पाकिस्तान जाली करेंसी भेज कर भारत में आतंकवाद फैला रहा है, तो क्या इसका अर्थ यह समझा जाए कि पाकिस्तान 400 करोड़ के जाली नोटों के द्वारा भारत में आतंकवाद फैला रहा है और अब सरकार द्वारा नोटबंदी के बाद यह बंद हो जाएगा? इससे ज्यादा हास्यस्पद कोई तर्क नहीं हो सकता क्योंकि किसी देश के लिए 400 करोड़ रुपए बड़ी रकम नहीं होती। अगर पाकिस्तान को हमारे देश में आतंकवाद फैलाना ही है तो वह असली करेंसी देकर भी यह काम कर सकता है। 
माओवाद और पूर्वोत्तर के राज्यों में चल रहे राष्ट्रीयता के संघर्ष जनता के सहयोग से चल रहे हैं। हो सकता है कि उनके रिजर्व कम हो जाएं, कुछ समय के लिए उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़े लेकिन वे संघर्ष भाड़े के सिपाहियों के द्वारा नहीं लड़े जा रहे, न ही वे चंद व्यक्ति द्वारा की जाने वाली कार्रवाइयां हैं। ये आंदोलन देश की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों से पैदा हुए हैं। इन्हें कभी किसी पूंजीपति, बड़े जमींदार या किसी विदेशी ताकत का पैसा नहीं मिला। जनांदोलन में पैसे जरूरी होते हैं लेकिन सबसे ज्यादा जरूरी नहीं। आने वाला वक्त यह बात साबित कर देगा कि सरकार के इस कदम से इन आंदोलनों पर कोई निर्णायक कुठाराघात नहीं हुआ है। और ये जनता के सहयोग के साथ आगे भी बदस्तूर चलते रहेंगे। 
क्या कालाधन बाहर आएगा? अगर आएगा भी तो कितना? यह सवाल बेहद महत्वपूर्ण है। पुनः आर्थिक जानकारों का मानना है कि तिजोरियों में रखा पैसा कालेधन का एकमात्र स्रोत नहीं होता। काला धन कई रूपों में मिलता है। करेंसी के रूप में एक अनुमान के अनुसार काला धन कुल काले धन का महज 20» तक ही होता है। जेएनयू के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री अरूण कुमार जिन्होंने काले धन पर किताब भी लिखी है, उनका मानना है कि करेंसी के रूप में काला धन महज 3» होता है। बाकी का काला धन अन्य रूपों में मिलता है। 2014 में लोकसभा के चुनावों के वक्त काले धन पर जितनी भी चर्चा हुई वह सारी विदेशों में गए काले धन पर थी। मोदी और अमित शाह ने अपने चुनावी रैलियों में विदेशों में गए काले धन को वापिस लाने पर ही देश की जनता को सब्जबाग दिखाए थे जिसे अमित शाह ने बाद में चुनावी जुमला बता दिया था। यानि उस वक्त वे लोग स्पष्ट थे कि काले धन का मुख्य भंडारण विदेशी बैंक खातों में है जिस पर बाद में सरकार ने यू टर्न ले लिया। इसके अलावा रियल एस्टेट व सोना काले धन को छुपाने के मुख्य तरीके हैं। असल में पूंजीपति कभी तिजोरियों में अपना काला धन नहीं रखता। उसका काला धन कहीं न कहीं निवेश करके रखा होता है। या तो शेयर बाजार में, कहीं बेनामी सम्पत्तियों के रूप में तो कहीं विदेशी कंपनियों में। इसलिए कल तक जिन लोगों के पास काला धन होने की बात थी, उन्हें इस नोटबंदी से कोई सेक नहीं लगा। रियल एस्टेट और सोने के रूप में जिन लोगों ने काला धन रखा है, उन्हें भी इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। याद होगा, 8 नवंबर की रात से 10 नवंबर तक लोगों ने खूब सोना खरीदा था। उस वक्त 60,000 रुपए प्रति 10 ग्राम में सोने की कालाबाजारी चल रही थी हालांकि सफेद धन के रूप में सोना तब भी 34,000 रुपए प्रति 10 ग्राम मिल रहा था। इसके क्या निहितार्थ हैं? कुछ लोगों का काला धन दूसरों के काले धन में बदल गया। काले धन ने जेब बदल दी। आखिर 34000 रुपए वाला सोना जिस व्यक्ति ने 60000 में बेचा, उसने काला धन ही तो कमाया है।
हालांकि सरकार कह रही है कि वह बेनामी सम्पत्तियों की जांच करवाएगी। सोने के रूप में जिन लोगों के पास काला धन है, उसे भी बाहर निकालेगी। लेकिन यह बात आज जनआक्रोश को कम करने के लिए कही जा रही है। इसमें असली मंशा का कोई सवाल नहीं है। अगर सरकार सचमुच देश में गैरबराबरी खत्म करने और काले धन को खत्म करने के लिए सकंल्पबद्ध है तो देश के व्यापक इलाकों में रैडिकल भूमि सुधारों की जरूरत है। देश के कानून के मुताबिक भूमि का वितरण कर दिया जाए, तो देश से आधी से ज्यादा समस्याओं का स्वतः समाधान हो जाएगा। देश में या तो भूमि सुधार लागू ही नहीं किए गए। जहां भूमि सुधारों का ढोल पीटा गया वहां लाखों एकड़ जमीन कुत्ते-बिल्ली, देवी देवताओं के नाम पर है, लाखों एकड़ जमीन बेनामी है। अगर सरकार ईमानादारी से इन सभी बेनामी सम्पत्तियों को इनके असली हकदारों को दिलवा दे, तो सचमुच में यह मोदी सरकार का एक क्रांतिकारी कदम होगा। लेकिन हाथी के दांत खाने के और हैं और दिखाने के और। 
काला धन करेंसी के रूप में भ्रष्ट नौकरशाह, सूदखोर और राजनीतिक पार्टियों के लोग रखते हैं। राजनीतिक पार्टियों को अपने चंदों के स्रोत बताने चाहिए इसे लेकर भाजपा सहित कोई भी पार्टी सहमत नहीं है। क्यों नहीं सभी राजनीतिक दल सूचना के कानून के दायरे में आते? क्यों नहीं सभी राजनीतिक दल अपनी सम्पत्तियों के स्रोत सार्वजनिक करते? ईमानदारी की अलंबरदार बनी भाजपा क्यों इसका विरोध करती है? यह बात समझने के लिए हमें आइंसटीन के दिमाग की जरूरत नहीं है। नोटबंदी के प्रकरण पर भी भाजपा और प्रधानमंत्री कटघरे में खड़े दिखते हैं। प्रधानमंत्री ने दावा किया था कि उनके इस कदम की जानकारी किसी को नहीं है। क्या यह महज एक संयोग है कि पश्चिमी बंगाल की भाजपा इकाई ने इस एलान से महज कुछ घंटे पहले अपने खातों में 3 करोड़ रुपए जमा करवाए थे? क्या यह एक महज संयोग है कि बिहार में लगभग 22 जगह पर पिछले महीने में भाजपा ने जमीनें खरीदी हैं। क्या यह भी महज एक संयोग है कि भाजपा के नजदीक माने जाने वाले समाचार पत्र दैनिक जागरण के कानपुर संस्करण में अक्तूबर के आखिरी दिनों में यह समाचार छप चुका था कि 500 और 1000 के नोट बंद होंगे और 2000 के नोट चालू किए जाएंगे।
कितना काला धन सरकार के पास आएगा? इसका उत्तर है कि अधिकतम राशि 4 लाख करोड़ रुपए की है। और न्यूनतम के बारे में आज आकलन नहीं किया जा सकता। क्योंकि 14 लाख करोड़ रुपए में से 4 लाख करोड़ रुपए पहले से ही बैंकों में, आरबीआई और अन्य सरकारी अर्ध सरकारी संस्थाओं के पास मौजूद थे। दिसंबर की 3 तारीख तक लगभग 12-75 लाख करोड़ रुपए बैंकों के पास वापिस आ चुके हैं। माना जा सकता है कि इसमें से अधिकांश धन काला नहीं है। बाकी बची राशि में से कितना पैसा और आगे आने वाले दिनों में वापिस आएगा, इसके बारे में आज दावे से कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन निश्चित ही एक अच्छी खासी रकम वापिस जरूर आएगी। इस गति से लगता तो यह है कि सरकार को अंततः प्रिंट की गई करेंसी से भी ज्यादा करेंसी मिलने वाली है। ये आंकड़े बता रहे हैं कि काला धन उजागर करने के लिए मोदी का यह ‘मास्टर स्ट्रोक’ पूरी तरह फेल हो गया है। उलटे इस कदम से देश और ज्यादा कंगाल हो गया है। क्योंकि 1-28 लाख करोड़ रुपए के खर्च के अलावा देश की जीडीपी में जितनी कमी आएगी, वह अतिरिक्त घाटा देश उठाने वाला है। 
क्या इस कदम से आने वाले समय में काला धन संचित करने पर रोक लगने वाली है। साफ जबाव है कि नहीं। नए सिरे से भ्रष्टाचारी अपने पुराने घाटों को पूरा करने के लिए काम करेंगे। अब तो सरकार ने और सुविधा कर दी है। 1000 के नोटें की जगह 2000 के नोट जारी करने से अब काला धन रखना और आसान हो गया है। पंजाब और उत्तरप्रदेश के चुनाव दिखाने वाल हैं कि कैसे इस नोटबंदी का असर बेअसर हो गया है। 
हां, एक बात जो इस पूरे प्रकरण में सबसे महत्वपूर्ण दिखाई दी, वो है जनता की भूमिका। अगर जनता को लगने लगता है कि कोई कदम आम तौर पर समाज की सफाई के लिए जरूरी है तो उसके लिए वह अनेकों कष्ट उठाने के लिए भी तैयार रहती है। हालांकि यह एक कड़वी सच्चाई है कि जनता को पुनः धाोखा मिलने वाला है लेकिन कल अगर कोई सचमुच जनता के हित में काम करेगा, तो जनता उसके साथ खड़ा भी होगी और कष्ट भी सहेगी। यह तय है। और यही एक मात्र सुनहरी किरण है इस अंधेरे समय में ।

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