सहारनपुर में 5 मई की हिंसा के अठारहवें दिन 6 लोगों की एक टीम शब्बीरपुर पहुंची। यहां
उऩ्होंने जो देखा, सुना और
ऑब्जर्व किया वह चौंकाने वाला है। खुद ही पढ़िए इस टीम के अनुसार कहां से शुरू हुई
हिंसा और कौन बने निशाना.......
थोड़ा आगे बढ़ते ही एक बरामदे में पांच-सात महिलाएं बैठी हैं, उनके चेहरों को देखकर थोड़ा भी
संवेदनशील आदमी कांप उठेगा। निचुड़ा हुआ बीमार-सा दहशतगर्द चेहरा। वे एक साथ कह
उठती हैं, जरा यह भी
घर देख लीजिए। वह घर पूरी तरह से जल गया था, उस घर के बरामदे में तीन जली मोटर
साइकिलें पड़ी थीं, लोहे की
आलमारी बुरी तरह से तोड़ी गई, जली पडी थी। महिलाओं ने बताया, कुछ ही दिनों पहले इस घर में नई बहु आई
थी। आतताई उसका सारा सामान लूटकर,लेकर चले गए। उन्होंने बताया और दिखाया कि इस घर में कुछ भी
नहीं बचा है, सब जल गया
है। लगभग कुल 25 घरों में
आग लगाई गई। मोटर साईकिल, टी.वी. और
पंखा, जिन भी
घरों में थे, उन्हें
तहस-नहस कर दिया गया।
असल में डॉ. अंबेडकर की मूर्ति पांच-छह फीट ऊंचे चबूतरे पर
लगने वाली थी, मूर्ति का चेहरा गांव के भीतर की सड़क की ओर था, अंबेडकर
की मूर्तियों का एक पांव आगे की ओर चलने की मुद्रा में बढ़ा होता है, वही
सड़क राजपूतों के निकलने का भी रास्ता था, उनको
लगता था कि मूर्ति के पांवों तले से गुजरना पड़ेगा। फिर 5 मई को
राणा प्रताप की जयंती का अवसर आया। यह जयंती शब्बीरपुर गांव से दूर एक गांव
शिमलाना में मनाई जानी थी। दूर-दूर के राजपूतों को न्यौता भेजा गया था। वे लोग
शिमलाना में जुटे भी थे, लेकिन
सैकड़ों की संख्या में लोग तलवारों, बंदूकों
और अन्य हथियारों के साथ शब्बीरपुर में भी जुटे और जुलूस की शक्ल में बाजे-गाजे के
साथ शब्वीरपुर से शिमलाना जाने की तैयारी कर रहे थे। दलितों ने बिना अनुमति के इस
जुलूस पर अपना एतराज प्रशासन से जताया था, तनाव
की आशंका में ही पुलिस पहले से ही शब्बीरपुर में तैनात थी।
हम लोग घायलों से मिलने सहारनपुर सरकारी अस्पताल गए। कुल लगभग 17 लोग घायल हैं, सबसे गंभीर रूप से घायल दलित संत
कुमार देहरादून के जोली-ग्रांट अस्पताल में भर्ती हैं, दो बार आपेरशन हो चुका है। उसकी
हालात गंभीर है। 5-6 लोग निजी
अस्पतालों में हैं। 10 लोग सरकारी
अस्पताल में थे। उसमें 4 महिलाएं और
6 पुरूष हैं।
सबसे बदत्तर हालात एक पति-पत्नी की है। जिनका नाम अग्नि भाष्कर और रीना है। सिर से
पांव तक दोनों पर तलवार और छड़ों से वार किया गया है। छाती बचाने की कोशिश में रीना
के दोनों हाथ तलवार से बुरी तरह जख्मी हैं। दोनों पति-पत्नी के सिर, हाथ, पांव, जांघ, पेट और पीठ पर पट्टियां बंधी हुई
हैं। सबसे ह्दयविदारक दृश्य यह था कि रीना की, सबकुछ से अनजान मासूम बच्ची बेहोशी की
स्थिति में पड़ी मां के घायल स्तनों से दूध पाने की कोशिश कर रही है।
राजपूतों ने एक गन्ने के खेत में भी आग लगा दी, क्योंकि
उन्हें अंदेशा था कि दलित भागकर इसी में छिपे हैं। दलित टोले के लोगों ने बताया कि
वे हर हर महादेव, जै श्रीराम, जै
राणा प्रताप का नारा लगा रहे थे। वे चिल्ला रहे थे कि शब्बीरपुर में रहना है, तो
योगी-योगी कहना है। हमलावरों की भीड़ अंबेडकर मुर्दाबाद के नारे भी लगा रही थी।
जातिसूचक और मां-बहनों को संबोधित कर गालियां दी जा रही थीं। घायलों ने बताया कि
मारते हुए और गालियां देते हुए वे लोग कह रहे थे कि ‘बोल
राणा प्रताप की जय, बोल
अंबेडकर मुर्दाबाद’ बुरी
तरह से घायल भाष्कर ने हम लोगों से कहा कि हम कैसे अंबेडकर मुर्दाबाद बोल सकते थे।
इस टीम में डॉ. पुष्पेंद्र, संदीप राऊ, डॉ. सौरभ, मदन पाल गौतम, सिद्धार्थ और संदीप शामिल थे।
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