दलित नेता व बामसेफ से
सम्बन्धित सुरेश द्राविड़ जी ने अपने फेसबुक वाल पर अग्रलिखित उद्धरण शेयर किया
हुआ है -
ये
द ग्रेट चमार क्या होता है ? फिर बाकि के द ग्रेट
भंगी, द ग्रेट खटीक, द ग्रेट महार, द ग्रेट ढ़ीवर होने
लगेगें । ये तो जातियां मजबूत हो रही हैं । उनकी दी गई जातियों पर गर्व करोगे तो
जातिवाद मजबूत होता जाएगा । ये बाबा साहब का एनहिलेशन आफ कास्ट नही है । ये बुद्ध
की समता नहीं है ।- राहुल शैंडे
सुरेश
जी की पोस्ट पर अच्छी चर्चा चल रही है ।
जातिवाद
ब्राह्मणवादी हिन्दू धर्म का उत्पाद है । इस घृणित व्यवस्था से लड़ते लड़ते बाबा
साहब ने अपना जीवन कुर्बान कर दिया । लेकिन आज भी हमारे समाज के लोग जाति विशेष का
होने पर गर्व अनुभव करते हैं । ये हमारे अंदर का बा्रह्मणवाद है । इसका विरोध किया जाना चाहिए । जाति
व्यवस्था इतनी खतरनाक है जो खुद वंचित वर्ग को भी बांट कर रख देती है । सुरेश जी
ने सही सवाल उठाया है । समस्त दलित समाज की एकता का सवाल आज हमारे सामने मूंह बाए
खड़ा है । उच्च जातियों के जूल्म का मुकाबला कोई एक अकेली दलित जाति नहीं कर सकती
। सभी दलित जातियों को एक मंच पर आना होगा । सैद्धांतिक रूप से कोई इसका विरोधी भी
नहीं होगा । अपने भाषणों में सभी बहुजन समाज की बात करते हैं । बाबा साहब के सच्चे
अनुयायी होने का ढोंग करते हैं लेकिन कारवाई के स्तर पर जातिवाद की विचारधारा को
मानते हैं । एक ठोस उदाहरण देकर मैं अपनी बात करना चाहूंगा । अभी हाल ही में जिला
कैथल के बालू गांव में दबंग जाति के बदमाशों ने दलित बस्ती पर हमला कर दिया । घरों
में तोड़फोड़ की गई । दस से ज्यादा लोग जख्मी हुए । डर के मारे दलित पलायन कर गए ।
प्रशासन के साथ मिलकर दबंग पीडि़तों पर समझौते का दबाव बना रहें हैं ।
पीडि़तों
के प्रति अपनी संवेदना प्रकट करने के लिए इनेलो पार्टी के रामपाल माजरा भी
पीडि़तों से मिल चुके हैं । हालांकि दलित उत्पीड़न के मामले में इनेलो का रिकार्ड
कोई अच्छा नहीं है । लेकिन जिला कैथल से कोई भी दलित नेता, बसपा
पदाधिकारी व अम्बेडकरी मिशन का अनुयायी पीडि़तों को नहीं मिला । 10
मई को बालू मामले में कैथल शहर में रोष-प्रदर्शन था । सोशल मीडिया पर सबको जानकारी
थी । एक महिना गुजरने के बाद भी कोई बालू नहीं गया । हालांकि आल हरियाणा अनुसूचित
जाति कर्मचारी संघ से जुड़े दलित वर्ग के कर्मचारियों ने जरूर जवाहर पार्क में आकर
बालू घटना की निंदा करी । लेकिन यह भी केवल नैतिक सर्मथन भर था । ये कर्मचारी रोष
मार्च में शामिल नहीं हुए । जवाहर पार्क से ही जलूस से अलग हो गए ।
ये
बाबा साहब के आदोंलन की कैसी विडंबना है ? ये बहुत अच्छी बात है कि हम दूसरे राज्यों में भी जब दलित वर्ग पर
जूल्म होता है तो यहां विरोध करते हैं । ये अच्छी बात है कि हम उसका विरोध करने के
लिए कहीं भी जाकर विरोध जताने की हिम्मत रखते हैं । लेकिन ये कैसे संभव है कि हमें
अपने पड़ोस में होने वाला जूल्म दिखाई नहीं देता । अप्रेल और मई के महिनों के
अन्दर कैथल जिला में तीन संगीन मामले सामने आ चुके हैं । बालू के मामले पर बात हो
चुकी है । उझाना में एक घटना हुई । बुढा खेड़ा में एक बच्ची की बेरहमी से बाजू
तोड़ दी । आरोपी हाई कोर्ट से अग्रिम जमानत लेेने में कामयाब हो गया । नरवाना के
गांव झील में ही कल एक घटना हुई है । क्या ये दलित उत्पीड़न नहीं है ? हमारे
आसपास में घटी इन घटनाओं पर क्या हमें व हर उस सख्स को संज्ञान नही लेना चाहिए, जो
बाबा साहब के सपनों का भारत बनाना चाहता है ? सब लोग एक स्वर में कहेंगे कि हां हमें इन दलित उत्पीड़न की घटनाओं
का विरोध करना चाहिए । लेकिन विरोध नही किया जा रहा है । पीडि़तों से मिलकर उनको
सांत्वना भी नहीं दिया जा रहा । सुरेश जी ने जो सवाल उठाया है कहीं ना कहीं वही
विचारधारा बीच में आ रही है । बाल्मीकि दलितों पर जूल्म होता है] चमार
दलित चुप हैं । चमार दलितों की चुप्पी इसलिए भी खतरनाक है क्योंकि शिक्षा संगठन
व राजनीतिक चेतना के मामले में चमार अपेक्षाकृत विकसित हैं । दलित उत्पीड़न भी जातिवाद के घृणित दायरों में
बंट कर रह गया है । दलित आंदोलन को एक जाति विशेष की बपौती भर बनाने की कोशिश की
जा रही है । नहीं तो दलित आंदोलन की धरती कही जाने वाली कैथल की धरती पर दलितों पर
जूल्म हो और उसका विरोध ना किया जाए ये
कैसे संभव है दलित युवाओं से अपील
है कि दलित समाज को जातिवाद की घृणित चारदीवारी से बाहर लाने के लिए कमर कस लें ।
बाबा साहब की समानता, स्वतंत्रता
व बंधुता की विचारधारा का पालन करें । जातिवाद - बा्रह्मणवाद - मनुवाद की मौत की
घंटी बजा दें । और उसकी शुरूआत हमारे अंदर के जातिवाद- बा्रह्मणवाद - मनुवाद की
मौत की घंटी बजाकर करें ।
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